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ओंकारेश्वर: जहां आज भी चौपड़ खेलते हैं शिव-पार्वती

जहां पग-पग पर सांस लेता है शास्त्रों का सत्य, और जहां स्वयं महादेव निवास करते हैं

खंडवा, मध्यप्रदेश
🗓️ 18 जुलाई 2025
✍️ विशेष संवाददाता: अंजनी सक्सेना, विभूति फीचर्स

“सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम् ओंकारं अमलेश्वरम्॥”

शिव महापुराण में वर्णित यह श्लोक भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा का बखान करता है, जिनमें से चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के पवित्र तट पर ओंकार पर्वत पर स्थित है। ओंकारेश्वर और इसके सह-स्वरूप अमलेश्वर (परमेश्वर) की महिमा अपार है। इन्हें एक ही दिव्य शक्ति का दोहरा प्रकटीकरण माना गया है।

📿 तीर्थों में तीर्थ – ओंकारेश्वर

📜 स्कंद पुराण के रेवाखंड में कहा गया है:
“ओंकारतीर्थमासाद्य सर्वपापैः प्रमुच्यते।
नर्मदातटमासाद्य शिवलोकं स गच्छति॥”
अर्थात, जो भक्त ओंकार तीर्थ की यात्रा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।

विंध्य पर्वत की तपस्या से प्रकट हुए शिव

प्राचीन कथा के अनुसार, नारद मुनि के उकसावे पर विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया कि वे जिस कार्य की इच्छा रखते हैं, वह पूर्ण होगा। देवताओं और ऋषियों के आग्रह पर शिव वहीं ओंकार लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
⚡ इसके साथ ही विंध्य द्वारा बनाए गए पार्थिव लिंग को परमेश्वर (अमलेश्वर) लिंग कहा गया, और तभी से ये दोनों लिंग ओंकारेश्वर-अमलेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं।

👑 राजा मांधाता और शिव का आशीर्वाद

पौराणिक कथा अनुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मांधाता ने भी ओंकार पर्वत पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव ने उनके अनुरोध पर सदा के लिए यहीं निवास करने का वचन दिया, जिससे यह स्थान ओंकार-मांधाता नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।

देवताओं-दानवों के संघर्ष का केंद्र

एक अन्य कथा में वर्णित है कि जब देवता दानवों से पराजित हुए, तब वे भगवान शिव की शरण में आए। भगवान शिव ने उनकी रक्षा के लिए ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर दानवों को पराजित किया।

🌊 कुबेर के स्नान का पावन स्थल

ओंकार पर्वत के चारों ओर बहती कावेरी नदी, जो शिव की जटाओं से निकली मानी जाती है, अंततः नर्मदा में मिलती है। यहीं कुबेर ने स्नान कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस संगम को कावेरी-नर्मदा संगम कहते हैं।

चौपड़ खेलते हैं शिव-पार्वती

स्थानीय मान्यता है कि रात्रि के समय शिव-पार्वती यहां चौपड़ (साँप-सीढ़ी जैसे खेल) खेलते हैं।
🌙 रात्रि की शयन आरती के पश्चात मंदिर में चौपड़ की गोटियाँ और पांसे सजाकर रख दिए जाते हैं।
🌄 जब प्रातः पुजारी गर्भगृह में प्रवेश करते हैं, तो पांसे और गोटियाँ बिखरी हुई अवस्था में मिलती हैं – जैसे किसी ने अभी-अभी चौपड़ खेला हो।

यह मान्यता भक्तों की अपार श्रद्धा का प्रतीक है, जो दर्शाती है कि ओंकारेश्वर केवल एक तीर्थ ही नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शिव की जीवंत उपस्थिति का साक्षात स्थल है।

🛕 आज भी गूंजता है ‘ओं’ का दिव्य नाद

ओंकारेश्वर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी है। यहां के घाट, मंदिर, गुफाएं और नर्मदा की कलकल धारा – सब मिलकर ऐसा अनुभव कराते हैं, जैसे महादेव स्वयं किसी कोने में ध्यानमग्न बैठे हों।

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🧘 ओंकारेश्वर – जहां शिव आज भी सांस लेते हैं।

 

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