लोक कल्याण के केंद्र भगवान त्र्यंबकेश्वर – श्रद्धा, शक्ति और समाधान का पवित्र तीर्थ

सब तक एक्सप्रेस | विशेष आलेख
लेखिका: अंजलि सक्सेना, विभूति फीचर्स | प्रस्तुति: सुनील कुमार मिश्रा (बद्री)
देवों के देव महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रत्येक का अपना विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है। उन्हीं में से एक अत्यंत पूजनीय ज्योतिर्लिंग है – भगवान त्र्यंबकेश्वर, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यंबक गांव में ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है। यह शिवलिंग न केवल आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि लोक कल्याण के दिव्य उद्देश्य से प्रकट हुआ स्वरूप भी है।
त्र्यंबकेश्वर – पौराणिक गौरव का प्रतीक
शिवमहापुराण में वर्णित कथा के अनुसार, त्र्यंबकेश्वर का प्राकट्य गौतम ऋषि की तपस्या और गंगा के अवतरण से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में यह क्षेत्र अत्यंत सूखा और निर्जन था। जल की भारी कमी के चलते यहां के ऋषि-मुनियों और उनके परिवारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। एक दिन जल को लेकर हुए विवाद ने बड़ा रूप ले लिया और गौतम ऋषि पर अनजाने में ब्रह्महत्या का दोष लग गया।
ऋषियों ने कहा कि यदि गौतम ऋषि इस स्थान पर गंगा को अवतरित करवा लें, तभी वे इस पाप से मुक्त हो सकते हैं। इसके बाद ऋषि गौतम ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा, जिस पर गौतम ऋषि ने यहां गंगा के अवतरण की प्रार्थना की।
त्रिदेवों का संयुक्त रूप
गंगा जी ने इस शर्त पर अवतरण की सहमति दी कि भगवान शिव भी इसी स्थान पर निवास करेंगे। लोकहित की भावना से भगवान शिव ने यह शर्त स्वीकार कर ली और वे त्र्यंबकेश्वर रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवताओं के संयुक्त स्वरूप में यहां प्रकट हुए। तभी से यह ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं से गोदावरी नदी का उद्गम हुआ, जिसे गौतमी भी कहा जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की विशेषताएं
आज भी त्र्यंबक गांव में स्थित इस मंदिर में भगवान शिव तीन पिंडियों के रूप में विराजमान हैं, जो त्रिदेवों का प्रतीक हैं। मंदिर की जलहरी में निरंतर जल प्रवाहित होता है, जो गंगा के दिव्य स्वरूप का स्मरण कराता है।
मंदिर परिसर में स्थित कुशावर्त कुंड एक पवित्र स्नानस्थल है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यहां पित्र दोष, कालसर्प योग, नारायण बलि और नागबलि जैसे धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं, जिनमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
हरियाली और प्राकृतिक चमत्कार
गौतम ऋषि द्वारा किए गए यज्ञ और हवन से इस क्षेत्र की प्रकृति भी जागृत हुई। जहां पहले सूखा और वीरानी थी, वहीं अब हरियाली, पहाड़ियां और भरपूर वर्षा का साम्राज्य है। आज भी त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र को भारी वर्षा और हरियाली के लिए जाना जाता है, जिसे ईश्वर कृपा का परिणाम माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर न केवल एक तीर्थ स्थल है, बल्कि यह श्रद्धा, तपस्या और समाज कल्याण की त्रिवेणी भी है। यह स्थान हमें सिखाता है कि जब कोई कार्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के हित के लिए किया जाता है, तो स्वयं ईश्वर भी साथ खड़े हो जाते हैं।
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