
सब तक एक्सप्रेस, रिपोर्ट — विज्ञान संवाददाता
भारतवर्ष को विश्वभर में औषधीय पौधों के भंडार के रूप में जाना जाता है। इन्हीं में एक महत्वपूर्ण और बहुपयोगी औषधीय वृक्ष है शीशम (Dalbergia sissoo), जिसे भारतीय रोजवुड के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इसे कई बीमारियों के इलाज में सदियों से प्रयोग किया जाता रहा है। यह न केवल त्वचा रोगों में बल्कि रक्त शुद्धि, एनीमिया, मूत्र विकार, कुष्ठ, सायटिका और बुखार जैसी जटिल समस्याओं में भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है।
वनस्पति विशेषज्ञ डॉ. जितेन्द्र कांटिया, श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय, रतनगढ़ के अनुसार शीशम वृक्ष का संपूर्ण स्वरूप — पत्तियां, छाल, जड़, बीज और लकड़ी — औषधीय दृष्टिकोण से उपयोगी है। उन्होंने बताया कि शीशम की पत्तियों का रस जलन, बुखार, आँखों की समस्या, पेट की गड़बड़ी और महिलाओं के प्रमेह रोग में लाभकारी है।
उन्होंने बताया कि:
- त्वचा रोगों में शीशम के पत्तों का लुआब तिल के तेल में मिलाकर लगाने से खुजली, फोड़े-फुंसी और चर्म रोगों में आराम मिलता है।
- एनीमिया के इलाज में 10–15 मिली पत्तों का रस सुबह-शाम पीना उपयोगी है।
- मूत्र विकार जैसे जलन और रुकावट में 20–40 मिली काढ़ा दिन में 3 बार पीना लाभदायक है।
- सायटिका के लिए छाल से तैयार विशेष काढ़ा, घी और दूध में पकाकर सेवन करने से राहत मिलती है।
- हैजा के लिए पत्तों का रस और अन्य जड़ी-बूटियों से बनी गोली कारगर बताई गई है।
- रक्त शुद्धिकरण के लिए शीशम के बुरादे से बने शर्बत का उपयोग अत्यंत प्रभावी माना गया है।
डॉ. कांटिया ने बताया कि शीशम का वैज्ञानिक वर्गीकरण Fabaceae कुल में किया जाता है और इसे विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे — हिंदी में शीशम, संस्कृत में कृष्णसार, उर्दू में शीशम, अंग्रेजी में रोजवुड आदि।
भारत में पारंपरिक चिकित्सा के साथ-साथ अब वैज्ञानिक शोध भी शीशम की औषधीय क्षमताओं की पुष्टि कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसका समुचित तरीके से उपयोग किया जाए तो यह कई दवाइयों का प्राकृतिक विकल्प बन सकता है।
(नोट: उपरोक्त जानकारी शैक्षणिक एवं जनहितार्थ है, किसी भी औषधीय प्रयोग से पहले विशेषज्ञ परामर्श आवश्यक है।)
📍 रिपोर्ट: सब तक एक्सप्रेस, विज्ञान डेस्क