
🖊 रिपोर्ट: सब तक एक्सप्रेस | जयपुर
जयपुर/झालावाड़।
राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलौद गांव में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। यह हादसा उस समय हुआ जब बच्चे कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे। शिक्षा के मंदिर में इस तरह की असामयिक मौतें राज्य की प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा को उजागर करती हैं।
घटना को लेकर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने शिक्षा विभाग की भूमिका पर संज्ञान लिया है, लेकिन कई अन्य विभागों की निरंतर उपेक्षा पर सवाल उठाते हुए समाजसेवी कैलाश चंद्र कौशिक ने कहा —
“क्या सिर्फ शिक्षा विभाग दोषी है? ग्राम पंचायत, निर्माण विभाग, निरीक्षण एजेंसियाँ और अन्य ज़िम्मेदार संस्थाएँ क्यों बचाई जा रही हैं?”
💬 कैलाश कौशिक के प्रमुख सवाल और आरोप
- स्कूल की जर्जर हालत की पूर्व सूचना ग्राम पंचायत को थी। रिकॉर्ड में ₹1 लाख मरम्मत मद में आवंटित भी था — तो क्या ये राशि खर्च हुई या सिर्फ कागजों पर?
- सरपंच और पंचायत के पास करोड़ों का बजट और मरम्मत की शक्तियाँ होती हैं, फिर क्यों नहीं हुआ समय रहते निरीक्षण और जीर्णोद्धार?
- क्या निर्माण कार्य की गुणवत्ता खराब थी? क्या ठेकेदारों पर कोई जिम्मेदारी तय की गई?
- ग्राम पंचायत को कानूनी तौर पर स्थानीय प्रशासनिक संस्था माना गया है — तो अधिकारियों द्वारा उसकी उपेक्षा क्यों?
⚖ लापरवाही की लंबी श्रृंखला
कौशिक ने अन्य विभागों पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने बताया कि पशु चिकित्सा केंद्र, आयुर्वेदिक अस्पताल, ग्रामीण चिकित्सा संस्थानों में अक्सर प्रभारी ग़ैरहाज़िर रहते हैं, और हाजरी रजिस्टर ताले में बंद रखते हैं ताकि कोई शिकायत न कर सके।
“डीडीओ तक सरकारी भ्रमण का बहाना बनाकर ग़ायब रहते हैं। यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित मिलीभगत का हिस्सा है।”
📢 “मुआवज़ा समाधान नहीं, सुधार ज़रूरी है”
उन्होंने लाठीचार्ज जैसी घटनाओं को भी मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया और कहा —
“सरकार मुआवजा देकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। यह तो डबल इंजन सरकार की नाकामी का प्रतीक है। सुधार और पारदर्शिता अनिवार्य है।”
📌 निष्कर्ष
इस हृदयविदारक घटना ने फिर एक बार यह सवाल खड़ा कर दिया है कि गांवों और दूर-दराज क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और संरचना जैसे बुनियादी क्षेत्रों में जिम्मेदार कौन है? क्या केवल शिक्षा विभाग पर संज्ञान लेना पर्याप्त है, या अब पूरे सरकारी तंत्र की जवाबदेही तय करना ज़रूरी हो गया है?
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