
संवाददाता: सब तक एक्सप्रेस
वाराणसी। आध्यात्मिक नगरी काशी ने गुरुवार की शाम एक बार फिर भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का अद्भुत उदाहरण पेश किया। लाटभैरव मंदिर प्रांगण में 500 सालों पुरानी रामलीला और मस्जिद में अदा की जा रही मगरिब की नमाज एक साथ, बिना किसी व्यवधान के संपन्न हुई। जहां एक ओर अजान में “अल्लाह हू अकबर” की गूंज रही थी, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे की थाप पर “मंगल भवन अमंगल हारी” का स्वर गूंजता रहा।
शाम 4:45 बजे लाटभैरव मंदिर के चबूतरे पर तुलसीदास रचित रामचरितमानस का पाठ आरंभ हुआ और ठीक पांच बजे पश्चिमी हिस्से में नमाजियों ने इबादत शुरू की। दोनों परंपराओं का यह अद्भुत संगम देखने वालों के लिए आस्था और सौहार्द का संदेश लेकर आया।
रामलीला व्यास दयाशंकर त्रिपाठी ‘जयंत’ ने रामचरितमानस के संवादों को आगे बढ़ाया, तो वहीं इमाम ने नमाज की अगुवाई की। दिलचस्प बात यह रही कि नमाज पूरी होने के बाद कई मुस्लिम दर्शकों ने भी रामलीला में शामिल होकर तुलसी और मिश्री का प्रसाद ग्रहण किया।
लाटभैरव रामलीला के प्रधानमंत्री एडवोकेट कन्हैयालाल यादव ने कहा कि यह परंपरा भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि इस रामलीला की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास और उनके मित्र मेघा भगत ने करीब 500 साल पहले की थी और यह परंपरा मस्जिद बनने से पहले से लगातार जारी है।
काशी की इस अनोखी परंपरा ने एक बार फिर साबित किया कि यहां धर्म, आस्था और संस्कृति से बढ़कर प्रेम, भाईचारा और सहिष्णुता सर्वोपरि है। यह दृश्य केवल आंखों को सुकून ही नहीं देता, बल्कि दिलों को भी यह यकीन दिलाता है कि भारत की सांस्कृतिक एकता हर तनाव पर भारी है।
📌 संवाददाता: सब तक एक्सप्रेस