अंतरराष्ट्रीय

भारत ने अफगान एयरबेस पर अमेरिकी इरादों के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट की, बगराम में नया गठबंधन स्थापित –

भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण: अफगानिस्तान और अमेरिका के साम्राज्यवादी मंसूबों का सामना

1. अफगान एयरबेस पर कब्जे की अमेरिका की मंशा

भारत हमेशा से अपनी विदेश नीति में आत्मनिर्भरता और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देता आया है। हाल ही में, अमेरिका की योजना बगराम एयरबेस पर कब्जा जमाने की कोशिशों का भारत ने कड़ा विरोध किया है। बगराम एयरबेस का रणनीतिक महत्व है, और इसे नियंत्रित करने की अमेरिका की मंशा से न केवल अफगानिस्तान में स्थिति जटिल हो जाएगी, बल्कि इसका क्षेत्रीय प्रभाव भी बढ़ेगा।

भारत का मानना है कि इस प्रकार की कार्रवाइयाँ केवल स्थिति को और खराब करेंगी। भारतीय राजनयिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका की यह नीति न केवल अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को बाधित करेगी, बल्कि इसे पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी रिश्तों में खटास पैदा कर सकती है।

2. पाकिस्तान के साथ खड़ा भारत

इस संदर्भ में, भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को सहज रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। जब अमेरिका ने अपनी इच्छाएँ जाहिर कीं, तो भारत ने बड़े मंच से इसका विरोध किया। यह भारत का स्पष्ट संकेत है कि वह अमेरिकी साम्राज्यवादी मंसूबों के खिलाफ खड़ा है।

भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देशों ने एक साझा दृष्टिकोण विकसित किया है कि अमेरिका की हरकतें न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए विनाशकारी हो सकती हैं। इस प्रकार, भारत की कूटनीति न केवल आत्मनिर्भरता की दिशा में है, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग को भी प्रोत्साहित करती है।

3. ट्रंप की राजनीति और उसकी चुनौतियाँ

जब ट्रंप प्रशासन ने अपनी नीतियों को लागू करने की कोशिश की, तो भारत ने भी स्पष्ट किया कि वह इस समय पैठ बनाने वाले खुद को मजबूर नहीं होने देगा। भारत और पाकिस्तान के बीच का समूह एक शक्तिशाली मोर्चा बना सकता है, जो अमेरिका की चालों को विफल करने में सहायक हो सकता है।

इस समूह का उद्देश्य न केवल अमेरिकी प्रभाव को सीमित करना है, बल्कि क्षेत्र में स्थिरता की दिशा में भी कदम बढ़ाना है। भारतीय कूटनीति का यह नया आयाम दर्शाता है कि भारत अब केवल एक दर्शक नहीं रह गया, बल्कि वह क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर फैसले लेने में एक सक्रिय भागीदार के रूप में उभर रहा है।

4. अफगानिस्तान में भारत की भूमिका

भारत ने हमेशा से अफगानिस्तान में विकास और पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय सहायता कार्यक्रमों ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे के विकास में मदद की है। हालांकि, अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों के चलते यह सहयोग अधिक मुश्किल हो गया है।

भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। यदि अमेरिका अपनी योजनाएँ जारी रखता है, तो यह न केवल अफगानिस्तान के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरनाक हो सकता है।

5. बगराम पर अमेरिका की जिद और इसके परिणाम

बगराम को नियंत्रित करने की अमेरिका की जिद को समझना आवश्यक है। यह केवल एक सैन्य एयरबेस नहीं है, बल्कि यह सामरिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। यदि अमेरिका इस एयरबेस पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करता है, तो अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रभाव और भी बढ़ जाएगा।

यह स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत का मानना है कि बगराम के नियंत्रण को लेकर अमेरिका की यह जिद न केवल क्षेत्र को अस्थिर करेगी, बल्कि अफगानिस्तान की भलाई में भी बाधा उत्पन्न करेगी।

6. भारत की आगे की रणनीति

इस संदर्भ में, भारत की कूटनीति बेहद महत्वपूर्ण है। अब भारत को एक ठोस रणनीति बनानी होगी, जिसमें वह न केवल अमेरिका की चालों का सामना कर सके, बल्कि पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्तों को भी मजबूत करता रहे।

भारत के नेतृत्व को यह समझना होगा कि केवल कूटनीतिक उपायों से ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से ही वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर काम करना, इस चुनौती का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।

7. निष्कर्ष

भारत का यह स्पष्ट संदेश है कि वह साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़ा है। इस समय, क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उसके प्रयासों को महत्व दिया जाना चाहिए। अमेरिका की नीतियाँ और मंसूबे न केवल भारत, बल्कि समस्त क्षेत्र के लिए चुनौती पेश करते हैं।

भारत अब केवल एक राष्ट्र नहीं रहा, बल्कि वह क्षेत्र की शक्ति के रूप में उभर रहा है। उसकी कूटनीतिक गतिविधियाँ आने वाले समय में न केवल अफगानिस्तान की स्थिरता को प्रभावित करेंगी, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में उसके प्रतिष्ठान को भी मजबूत करेंगी।

इस संदर्भ में, भारत की भूमिका और उसके द्वारा अपनाए गए कूटनीतिक कदम निश्चित रूप से इस क्षेत्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकते हैं। यह तभी संभव है जब भारत अपनी नीतियों को सशक्त बनाए और अन्य देशों के साथ मिलकर एक सहयोगी संरचना तैयार करे।

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