बिरसा मुंडा जयंती पर लखनऊ में सजा परंपरा और आकर्षण से भरपूर जनजातीय फैशन शो

सब तक एक्सप्रेस — विशेष रिपोर्ट
लखनऊ। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित जनजाति भागीदारी उत्सव के चौथे दिन रविवार को पारंपरिक परिधानों से सजा भव्य जनजातीय फैशन शो ‘परिधान प्रवाह’ मुख्य केंद्र रहा। देशभर की जनजातियों के परिधान, आभूषण, नृत्य और सांस्कृतिक पहचान को एक ही मंच पर देखने का यह अनूठा अवसर दर्शकों के लिए यादगार साबित हुआ। कार्यक्रम का निर्देशन थारू जनजाति की तारा चौधरी ने किया, जिन्होंने परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल पेश किया।
रैंप प्रस्तुति की शुरुआत जम्मू से हुई और क्रमशः गोवा, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान के कलाकारों ने अपनी-अपनी जनजातीय पोशाकों और शैलियों से दर्शकों का मन मोह लिया। मंच पर कलाकारों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों और अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक अदाओं से माहौल को जीवंत कर दिया।
राजस्थान के शनि धानुक के निर्देशन में प्रस्तुत सहरिया स्वांग विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। कलाकारों ने शरीर पर जनजातीय पेंटिंग और मोरपंखों से सजे परिधानों के साथ ‘राम रंग में रंगे’ जैसे गीतों पर समर्पित प्रदर्शन कर प्रकृति और अध्यात्म का सुंदर समन्वय दर्शाया। वानर रूप में सजे कलाकारों की कला ने दर्शकों को खूब प्रभावित किया।
सोनभद्र के सुरेश कुमार खरवार के नेतृत्व में अगरिया और चेरो जनजाति के कलाकारों ने “बिरसा मुंडा बहुत महान हो” सहित कई लोकगीतों की प्रस्तुति दी, जिसने पूरे वातावरण में उत्साह और गर्व भर दिया। इसके बाद सुक्खन द्वारा निर्देशित डोमकछ नृत्य ने माघ मास में महुआ गिरने के बाद होने वाली पारंपरिक विवाह प्रक्रिया को मोहक अंदाज़ में पेश किया।
अनंतनाग की रुबीना अख्तर और उनकी टीम ने गोजरी लोकनृत्य ‘उदि उदि कुंजे मेरी बींणी उत्थे बैठी’ प्रस्तुत किया, जिसमें प्रेम और भावनाओं से भरी कथा को नृत्य अभिव्यक्ति से जीवंत कर दिखाया गया। गोवा के कृपेश गांवकर के समूह ने खारबी नृत्य के जरिए मछुआरा समुदाय की नदी किनारे जाल फेंकने और सामूहिक उत्साह से मछली पकड़ने की पारंपरिक प्रक्रिया को आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया।
उत्सव परिसर में लगे खानपान स्टॉल भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे। रविवार होने के कारण अवधी व्यंजनों से लेकर राजस्थानी दाल-बाटी-चूरमा तक विभिन्न स्वादों के स्टॉल पर भारी भीड़ उमड़ती रही।
इस मौके पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित यह भव्य उत्सव न केवल जनजातीय संस्कृति और परंपरा का सुंदर परिचय बना, बल्कि दर्शकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव भी साबित हुआ।



