गीता जीवन–संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है
गीता जयंती पर आयोजित गोष्ठी में हुआ आध्यात्मिक विचार–मंथन

वरिष्ठ संवाददाता: राम अनुज धर द्विवेदी, सब तक एक्सप्रेस।
सोनभद्र। गीता जयंती समारोह समिति सोनभद्र द्वारा सोमवार को जयप्रभा मंडपम में “मानव जीवन में धर्मशास्त्र गीता की उपयोगिता” विषय पर विचार–गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि गीता जीविका–संग्राम का साधन नहीं, बल्कि जीवन के आंतरिक संग्राम में शाश्वत विजय का क्रियात्मक प्रशिक्षण है। यह संघर्ष दैवी–आसुरी, सजातीय–विजातीय तथा सद्गुण–दुर्गुणों के बीच का आंतरिक युद्ध है, जिसका लक्ष्य परब्रह्म की प्राप्ति है।
वक्ताओं ने कहा कि मनुष्य सांसारिक उपलब्धियों—धन, पद, सुख–समृद्धि—को ही महत्वपूर्ण समझकर जीवन भर उसी में उलझा रहता है, किंतु भौतिक समृद्धि कभी स्थायी सुख नहीं दे सकती। गीता मनुष्य को उसकी आत्मिक संपदा का परिचय कराती है और उसे शाश्वत सुख की ओर अग्रसर करती है।
साहित्यकार पारस नाथ मिश्र ने कहा कि गीता मनुष्य का उसके वास्तविक स्वरूप से परिचय कराती है, जो परमात्मा का विशुद्ध अंश है। वहीं डॉ. बी. सिंह ने कहा कि गीता का सार इन्द्रियों पर नियंत्रण एवं आत्मा की पहचान में है। विषय प्रवर्तन करते हुए अरुण कुमार चौबे ने बताया कि सांसारिक विषयों में स्थायी सुख नहीं, आत्मा के साक्षात्कार में ही स्थायी आनंद की प्राप्ति है।
आभार प्रकट करते हुए कवि जगदीश पंथी ने गीता को मानव मात्र का धर्मशास्त्र बताया। संचालन भोलानाथ मिश्र ने किया।

कार्यक्रम में विजय कनोडिया, सी.पी. गिरि, रामानुज पाठक, गणेश पाठक, आलोक चतुर्वेदी, नरेंद्र पांडेय, विमल चौबे, राजकुमार, चंद्रकांत तिवारी सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।
पांच विभूतियों का हुआ सम्मान
गीता जयंती के उपलक्ष्य में समिति द्वारा गीता के अविनाशी योग के प्रचार–प्रसार में योगदान देने वाली पांच विभूतियों को सम्मानित किया गया।
सम्मानित होने वालों में दीपक केसरवानी, ईश्वर विरागी, धनंजय पाठक, जटाशंकर पांडेय और चंद्र प्रकाश जायसवाल शामिल रहे। समिति ने उन्हें प्रशस्ति–पत्र प्रदान कर उनके प्रयासों की सराहना की।



