
सब तक एक्सप्रेस | नीमकाथाना
श्रावण शुक्ल तृतीया को मनाई जाने वाली हरियाली तीज केवल सुहाग का पर्व ही नहीं, बल्कि प्रकृति देवी की आराधना का महापर्व है। इस अवसर पर सेवानिवृत्त प्राचार्य और प्रख्यात विद्वान डॉ. कौशल दत्त शर्मा ने बताया कि हरियाली तीज वृक्षों और प्रकृति की पूजा का विशेष अवसर है, जिसमें वृक्षों को भगवान श्रीकृष्ण रूप में माना गया है।
डॉ. शर्मा ने कहा कि वृक्ष की जड़ से लेकर पत्तियों तक भगवान श्रीकृष्ण का वास है। वृक्षों का संरक्षण करना वास्तव में धर्म की रक्षा करना है। पुराणों के अनुसार वृक्ष रूपी कालपुरुष ही भूत, वर्तमान और भविष्य की गति को निर्धारित करता है। वृक्षों को काटना स्वयं काल को आमंत्रित करना है।
हरियाली तीज, जिसे मधुश्रवा तीज, सुकृत तीज, गौरी पूजोत्सव, शिवशक्ति प्रीति पर्व आदि नामों से जाना जाता है, चातुर्मास के आरंभ का प्रतीक है। इस दिन सुहागन स्त्रियां भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। वे सोलह श्रृंगार कर झूला झूलती हैं और लोकगीतों के माध्यम से उल्लास प्रकट करती हैं।
डॉ. कौशल दत्त शर्मा ने भविष्य पुराण का उल्लेख करते हुए बताया कि हरियाली तीज पर वृक्ष लगाना पुण्यदायक माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है —
“कालोऽहं वृक्षरूपकः”, अर्थात् मैं वृक्ष रूप में काल हूं।
जो वृक्षों को नष्ट करता है, वह धर्म, ऋतुचक्र और जीवनचक्र को तोड़ता है। वृक्ष लगाना, उनकी रक्षा करना, श्रीकृष्ण की पूजा के समान है।
हरियाली तीज व्रत कथा के अनुसार यह पर्व माता सती और भगवान शिव के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। सती ने अगले जन्म में पार्वती रूप में जन्म लेकर कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। तब से यह पर्व विवाह, प्रेम, और आत्मसमर्पण का प्रतीक बन गया।
डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि हरियाली तीज के साथ ही भारत के प्रमुख पर्वों का शुभारंभ हो जाता है — जैसे नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्र, करवा चौथ और दीपावली आदि।
अंत में उन्होंने कहा,
“हरियाली तीज केवल पर्व नहीं, बल्कि पर्यावरण और संस्कृति की एक जीवंत परंपरा है, जो सनातन धर्म की गहराइयों में समाई हुई है। प्रकृति से प्रेम करना, वृक्षों की पूजा करना — यही हमारी संस्कृति की आत्मा है।”
📍 रिपोर्ट: सब तक एक्सप्रेस संवाददाता, नीमकाथाना