एक साल बाद Air India के क्रेज में कमी; चुनौतियाँ बनीं, लेकिन सुधार की उम्मीदें भी बनीं।

एक समय था जब आकाश में उड़ते विमानों में “महाराजा” की छवि देश की शान होती थी। एयर इंडिया—टाटा की वह संतान जिसने भारतीयों को पहली बार हवाई यात्रा का सपना दिखाया।
1932 में जे.आर.डी. टाटा ने कराची से बंबई तक जब वह छोटी-सी उड़ान भरी थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही उड़ान एक दिन भारत की पहचान बनेगी। फिर आज़ादी आई, सरकार आई, और एयर इंडिया “राष्ट्रीय” बन गई।
लेकिन वक्त ने करवट बदली। कर्ज़ बढ़ा, सेवा गिरी, और कभी आसमान छूने वाला यह नाम ज़मीन से सिमटने लगा। 2021 में जब टाटा समूह ने इसे वापस लिया, तो उम्मीद की एक किरण फिर जागी। लोगों को लगा — अब “महाराजा” फिर से आसमान में राज करेगा।
फिर आया विस्तारा का विलय — एक नई उड़ान की उम्मीद। लेकिन जैसे कोई पुराना जहाज नए रंग से नहीं चमकता, वैसे ही एयर इंडिया की चमक लौटना आसान नहीं रहा। दुर्घटनाएँ, तकनीकी रुकावटें और घटती उड़ानें मानो बादलों में छिपे तूफान की तरह सामने आईं।
Air India–Vistara विलय का लक्ष्य था — संचालन का एकीकरण, लागत में कमी और बेहतर ग्राहक अनुभव। लेकिन मर्जर के बाद जो स्थिति बनी, वह दर्शाती है कि भारत के विमानन क्षेत्र में केवल पूँजी नहीं, प्रबंधन और रणनीति भी उतनी ही अहम है।
पहला, बेड़े में कमी — 208 विमानों से घटकर 187। यह स्पष्ट संकेत है कि रखरखाव और आपूर्ति में समस्या रही। पुराने विमानों को हटाना ज़रूरी था, लेकिन नए विमानों की आपूर्ति समय पर नहीं हो सकी।
दूसरा, दुर्घटनाओं का असर — अहमदाबाद की दुर्घटना ने यात्रियों का भरोसा कमजोर किया। सुरक्षा पर सवाल उठने से ब्रांड इमेज प्रभावित हुई।
तीसरा, उड़ानों में कमी — 5,600 से घटकर 4,823 साप्ताहिक उड़ानें। यह न केवल संचालन में चुनौती दिखाता है बल्कि पायलटों, कर्मचारियों और तकनीकी स्टाफ के समायोजन की कठिनाइयों की ओर भी इशारा करता है।
चौथा, बाजार हिस्सेदारी — सितंबर 2024 में 29.2% से घटकर सितंबर 2025 में 27.4%। यह गिरावट तब और गंभीर मानी जाती है जब इंडिगो जैसी निजी कंपनियाँ लगातार बढ़ रही हैं।
इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि केवल विलय से सफलता नहीं मिलती। एकीकरण के बाद की रणनीति, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, और ग्राहक भरोसे का पुनर्निर्माण ही वास्तविक चुनौती है।
आज भी एयर इंडिया आसमान में है, पर उसकी उड़ान पहले जैसी नहीं। यह कहानी सिर्फ एक कंपनी की नहीं, बल्कि उन सपनों की है जो वक़्त की आँधी में अपनी रफ्तार खो बैठते हैं।



