शिक्षा में नेतृत्व का लोकतंत्रीकरण — योगी सरकार का साहसिक कदम

उत्तर प्रदेश की शिक्षा सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष पद के लिए योग्यता में बदलाव का निर्णय केवल एक प्रशासनिक संशोधन नहीं है; यह नेतृत्व के लोकतंत्रीकरण की दिशा में साहसिक कदम है।
लंबे समय से आयोगों और बोर्डों के अध्यक्ष पदों पर केवल IAS अधिकारियों की नियुक्ति एक परंपरा बन चुकी थी।
लेकिन अब सरकार ने यह संकेत दिया है कि नेतृत्व किसी एक सेवा का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि योग्यता का अधिकार है।
यह कदम शासन की उस नई सोच को दर्शाता है जो पदों को वर्गीकृत नहीं, बल्कि योगदान-आधारित बनाना चाहती है।
शिक्षा जैसे क्षेत्र में जहाँ नीति, अनुशासन और संवेदनशीलता तीनों की आवश्यकता है — वहाँ विविध अनुभवों वाले अधिकारी नई ऊर्जा ला सकते हैं।
हालाँकि यह भी सत्य है कि किसी भी आयोग की सफलता व्यक्ति विशेष पर नहीं, उसकी प्रणालीगत पारदर्शिता पर निर्भर करती है।
इसलिए यह आवश्यक होगा कि नए अध्यक्ष चाहे किसी भी सेवा से हों, चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और योग्यता-आधारित बनी रहे।
योगी सरकार का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संदेश देता है —
“नेतृत्व अब पहचान से नहीं, प्रदर्शन से तय होगा।”



