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मोहन भागवत के अनुसार—संघ के काम पर पहले हंसी उड़ती थी, अब वही काम सम्मान पा रहा है।

मोहन भागवत के हालिया वक्तव्य ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और इस दिशा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) किस प्रकार एक निरंतर और सकारात्मक भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले लोग संघ के काम पर हंसते थे। समाज के कई वर्गों में यह धारणा थी कि संघ केवल शाखाओं में डंडा चलाने या प्रातःकालीन व्यायाम कराने वाला संगठन है। लेकिन समय बीतने के साथ सामाजिक वास्तविकताओं और संघ के कार्यों का व्यापक स्वरूप सामने आया। परिणामस्वरूप आज समाज में संघ की स्वीकार्यता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है।

भागवत के शब्द—“संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता, इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति की आवश्यकता होती है”—युवाओं के लिए विशेष संदेश रखते हैं। यह कथन केवल संघ को समझने की प्रक्रिया नहीं दर्शाता, बल्कि यह भी बताता है कि भारत के युवाओं को किसी भी विचार या संगठन को केवल दूर से देखकर नहीं, बल्कि उसके भीतर जाकर, अनुभव करके, समझना चाहिए। यही अनुभूति उन्हें राष्ट्र निर्माण में वास्तविक योगदान देने योग्य बनाती है।

युवा: राष्ट्र के भविष्य का आधार

आज भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां सबसे अधिक युवा आबादी मौजूद है। यह जनसांख्यिकी भारत के लिए अवसर भी है और चुनौती भी। यदि युवा अपनी ऊर्जा, क्षमता और दृष्टि को सही दिशा में लगा दें, तो भारत केवल एक मजबूत राष्ट्र नहीं, बल्कि विश्व का नेतृत्व करने वाली शक्ति बन सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब युवाओं में अनुशासन, सेवा-भाव, नेतृत्व क्षमता और सकारात्मक दृष्टि विकसित हो।

यहीं पर संघ का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हो जाता है। संघ अपने प्रारंभ से ही युवाओं के चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण पर जोर देता रहा है। शाखा की पद्धति, नियमित अभ्यास, बौद्धिक सत्र और सामाजिक संपर्क—ये सब तत्व युवा मन में जिम्मेदारी और समर्पण की भावना जगाते हैं।

पहले हंसी, अब सम्मान: परिवर्तन क्यों हुआ?

मोहन भागवत ने स्वीकार किया कि पहले लोग संघ के काम पर हंसते थे। वे उसकी पद्धति को हास्यास्पद या अनावश्यक मानते थे। यह धारणा इसलिए बनी क्योंकि संघ की विचारधारा और कार्यशैली को लोगों ने कभी प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा। वे केवल बाहरी आलोचनाओं या सतही जानकारी के आधार पर निष्कर्ष निकालते रहे।

लेकिन समय के साथ जब संघ के स्वयंसेवकों ने समाज में सेवा कार्यों, आपदा राहत, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया, तब लोगों की सोच बदली। जो कभी हंसी का विषय था, वह आज सम्मान का कारण बन गया। यह परिवर्तन इसलिए आया क्योंकि संघ ने अपने कार्यों को लोगों के सामने प्रदर्शित नहीं किया, बल्कि लोगों ने स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा को प्रत्यक्ष अनुभव किया। यह अनुभव ही वह “प्रत्यक्ष अनुभूति” है, जिसका भागवत ने उल्लेख किया।

संघ और युवा: एक प्रगतिशील संबंध

आरएसएस शुरू से ही युवाओं को राष्ट्र निर्माण की मुख्य शक्ति मानता रहा है। युवाओं में दो प्रमुख गुण होते हैं—ऊर्जा और आदर्शवाद। यदि इन्हें सही दिशा मिले तो राष्ट्र की तस्वीर बदल सकती है। संघ युवाओं को यह दिशा प्रदान करता है।

संघ का मानना है कि राष्ट्र निर्माण केवल सत्ता प्राप्ति या सरकारी नीतियों के माध्यम से नहीं होता, बल्कि समाज के अंदर से उठने वाली सकारात्मक ऊर्जा से होता है। इसके लिए ज़रूरी है कि युवाओं में दृढ़ चरित्र, नैतिक मूल्यों और सेवा-भाव का विकास हो। शाखाओं में भाग लेने वाले युवा न केवल शारीरिक रूप से मजबूत बनते हैं, बल्कि वे सामाजिक जिम्मेदारियों को भी समझते हैं।

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका: संघ का परिप्रेक्ष्य

राष्ट्र निर्माण एक व्यापक विषय है। इसमें कई आयाम हैं—शिक्षा, समाजसेवा, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक चेतना, तकनीक, नीति निर्माण और नैतिक मूल्य। संघ का मानना है कि इन सभी क्षेत्रों में युवाओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।

भागवत ने अपने भाषण में युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण केवल सरकारों का काम नहीं है। समाज जितना जागरूक होगा, राष्ट्र उतना अधिक मजबूत होगा। इस जागरूकता का नेतृत्व युवाओं को करना होगा। आज का युवा केवल अपने करियर तक सीमित न रहे, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति भी संवेदनशील हो।

‘प्रत्यक्ष अनुभूति’ का महत्व

भागवत ने स्पष्ट कहा कि “संघ ऐसे ही समझ में नहीं आता, इसे समझने के लिए प्रत्यक्ष अनुभूति आवश्यक है।” इसका अर्थ यह है कि किसी भी बड़े विचार को केवल पढ़कर या सुनकर नहीं समझा जा सकता, उसे अनुभव करना पड़ता है।
यही संदेश युवाओं के लिए भी है—यदि वे राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहते हैं तो उन्हें ज़मीनी स्तर पर उतरना होगा। केवल सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद की बातें करने से राष्ट्र मजबूत नहीं होता। वास्तविक राष्ट्रवाद सेवा, अनुशासन और सकारात्मक कर्म से प्रकट होता है।

जयपुर का कार्यक्रम और उसका महत्व

जयपुर में दिवंगत प्रचारकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित ग्रंथ “और यह जीवन समर्पित” के विमोचन समारोह में भागवत ने इन बातों को रखते हुए यह भी बताया कि संघ के प्रचारकों का जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। प्रचारक अपना सम्पूर्ण जीवन समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित कर देते हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि यदि व्यक्ति में त्याग, धैर्य और सेवा की भावना हो तो वह अकेला भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।

निष्कर्ष : युवाओं का संकल्प ही राष्ट्र की दिशा तय करेगा

मोहन भागवत के विचार हमें यह समझाते हैं कि भारत की प्रगति और स्थिरता युवाओं के हाथ में है। पहले लोग संघ के काम पर हंसते थे, लेकिन आज समाज में उसकी स्वीकार्यता इसलिए बढ़ी है क्योंकि उसने युवाओं के चरित्र और समाज के विकास के लिए लगातार कार्य किया है।

राष्ट्र निर्माण केवल नारों या भाषणों से नहीं होता। यह तब होता है जब युवा अपनी ऊर्जा, समय और क्षमता को समाज और देश की उन्नति के लिए समर्पित करते हैं। और संघ इसी समर्पण को दिशा देने वाला एक सशक्त मंच बनकर सामने आया है।

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