पत्नी को दो साल तक गुजारा भत्ता न मिले तो तलाक ले सकती है, हाईकोर्ट का अहम फैसला।

दो साल तक भरण-पोषण न देने पर पत्नी को तलाक का अधिकार
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रखा बरकरार
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने मुस्लिम कानून के तहत एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि यदि कोई पति लगातार दो वर्षों तक अपनी पत्नी को भरण-पोषण नहीं देता है, तो पत्नी को तलाक लेने का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है। कोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित तलाक की डिक्री को सही ठहराते हुए पति की याचिका खारिज कर दी।
यह फैसला मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 के अंतर्गत पत्नी के अधिकारों को स्पष्ट करता है और पति की जिम्मेदारियों को भी रेखांकित करता है।
मामला क्या है
यह मामला झारखंड के बोकारो जिले की एक मुस्लिम महिला से जुड़ा है, जिसका निकाह 30 सितंबर 2015 को छत्तीसगढ़ निवासी युवक से मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। शादी के मात्र 15 दिन बाद ही पति-पत्नी के बीच विवाद शुरू हो गया, जिसके बाद पत्नी मायके चली गई।
इसके बाद दोनों के बीच लंबे समय तक अलगाव बना रहा और पत्नी ससुराल नहीं लौटी। महिला ने आरोप लगाया कि पति ने उसे साथ रखने या आर्थिक सहायता देने का कोई प्रयास नहीं किया।
पत्नी के आरोप और फैमिली कोर्ट की सुनवाई
पत्नी ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि पति ने मई 2016 से अब तक उसे कोई भरण-पोषण नहीं दिया। उसने यह भी आरोप लगाया कि पति और उसके परिजनों द्वारा उसके साथ क्रूरता की गई।
फैमिली कोर्ट ने प्रस्तुत दस्तावेजों और रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि पति ने लंबे समय तक पत्नी को कोई आर्थिक सहायता नहीं दी, जो मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 की धारा 2 के तहत तलाक का वैध आधार है।
फैमिली कोर्ट का फैसला और हाई कोर्ट में अपील
फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री पारित कर दी। इस फैसले को पति ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी। पति की ओर से दलील दी गई कि पत्नी स्वयं मायके में रह रही थी, इसलिए भरण-पोषण न देने का आरोप सही नहीं है।
हालांकि हाई कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।
हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत पत्नी का भरण-पोषण करना पति की कानूनी जिम्मेदारी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी भले ही पति से अलग रह रही हो, लेकिन यदि पति लगातार दो वर्षों तक भरण-पोषण नहीं देता, तो यह तलाक का पर्याप्त और वैध आधार है।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में पति ने लगभग आठ वर्षों तक पत्नी को कोई भरण-पोषण नहीं दिया, जो कानूनन गंभीर चूक है।
क्रूरता के आरोपों पर राहत, तलाक बरकरार
कोर्ट ने पत्नी द्वारा लगाए गए क्रूरता के आरोपों को पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण स्वीकार नहीं किया। इससे पहले ट्रायल कोर्ट भी पति और उसके परिजनों को आईपीसी की धारा 498ए सहित अन्य आरोपों से बरी कर चुका था।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भरण-पोषण न देना अपने आप में तलाक का स्वतंत्र आधार है। इसी कारण फैमिली कोर्ट की तलाक की डिक्री को बरकरार रखा गया और पति की याचिका खारिज कर दी गई।
क्यों अहम है यह फैसला
यह फैसला उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जो लंबे समय से पति द्वारा आर्थिक उपेक्षा का सामना कर रही हैं। हाई कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि कानून पत्नी के अधिकारों की रक्षा करेगा और पति की जिम्मेदारी से बचने की अनुमति नहीं देगा।



