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भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रेपो दर 2025 का अनुमान; उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति | कोटक सिक्योरिटीज़ | ब्याज दर में 0.50% की कटौती संभव… ✅

आगामी कुछ महीनों में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो दर में 0.25% से 0.5% तक की कटौती की घोषणा होने की संभावना है। खाद्य पदार्थों के दामों में गिरावट और हाल ही में की गई जीएसटी में कटौती के प्रभाव से महँगाई मध्यम स्तर पर बनी हुई है। इस कारण, आरबीआई को आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए मौद्रिक नीति में नरमी लाने का अवसर मिलेगा, ऐसा कोटक सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, शुल्क और व्यापार से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद घटती महँगाई के कारण आर्थिक विकास को गति देने हेतु दरों में कटौती की गुंजाइश बन रही है। खाद्य पदार्थों के दाम घटने से सितम्बर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा महँगाई घटकर 1.54% पर आ गई।

रेपो दर घटने से बैंक को सस्ता ऋण मिलता है
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) जिस दर पर बैंकों को ऋण प्रदान करती है, उसे रेपो दर कहा जाता है। जब RBI रेपो दर कम करती है, तब बैंकों को सस्ता ऋण मिलता है और वे यह लाभ अपने ग्राहकों तक पहुँचाते हैं। इसका अर्थ यह है कि आने वाले समय में गृह एवं वाहन ऋणों की ब्याज दरें 0.50% तक घट सकती हैं।

संभावित कटौती के बाद, 20 वर्ष की अवधि वाले 20 लाख रुपये के ऋण पर ईएमआई में लगभग ₹617 की कमी होगी। इसी प्रकार, 30 लाख रुपये के ऋण पर ईएमआई ₹925 तक कम हो जाएगी। इससे नए और मौजूदा दोनों ग्राहकों को लाभ मिलेगा। 20 वर्षों में कुल लाभ लगभग ₹1.48 लाख रुपये तक होगा।

इस वर्ष रेपो दर में तीन बार कटौती की गई, कुल 1% की कमी
फरवरी की बैठक में आरबीआई ने ब्याज दर 6.5% से घटाकर 6.25% कर दी थी। लगभग पाँच वर्षों के बाद मौद्रिक नीति समिति द्वारा यह पहली दर कटौती थी।
अप्रैल में हुई दूसरी बैठक में भी 0.25% की कटौती की गई, और जून में रेपो दर को 0.5% घटाकर 5.50% कर दिया गया। इस प्रकार, मौद्रिक नीति समिति ने वर्ष 2025 में कुल 1% की कमी की है।

रिज़र्व बैंक रेपो दर क्यों बढ़ाता या घटाता है?
किसी भी केंद्रीय बैंक के पास महँगाई से निपटने के लिए “नीतिगत दर” (Policy Rate) के रूप में एक सशक्त उपकरण होता है। जब महँगाई बहुत अधिक होती है, तब केंद्रीय बैंक नीतिगत दर बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में धन प्रवाह को कम करने का प्रयास करता है।

यदि नीतिगत दर अधिक हो, तो बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक से ऋण लेना महँगा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप बैंक अपने ग्राहकों को भी महँगे दरों पर ऋण देते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में धन प्रवाह घटता है, मांग में कमी आती है और महँगाई पर नियंत्रण होता है।

इसी प्रकार, जब अर्थव्यवस्था मंदी या कठिन दौर से गुजरती है, तब पुनरुत्थान के लिए धन प्रवाह बढ़ाना आवश्यक होता है। ऐसे समय में केंद्रीय बैंक नीतिगत दर घटाता है। इससे बैंकों को केंद्रीय बैंक से सस्ता ऋण मिलता है और ग्राहक भी कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

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