अमेरिका के अध्ययन में पाया गया कि पर्याप्त नींद न लेने से भविष्य में डिमेंशिया (स्मृति भंग) का खतरा बढ़ सकता है।

अपर्याप्त नींद: वर्तमान की तेज़ रफ्तार वाली ज़िंदगी, मोबाइल और तकनीक का बढ़ता उपयोग, तथा समय की भागदौड़ के कारण मानव का जीवन भी अत्यधिक तेजी से गुजरने लगा है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारी नींद पर पड़ता है और अनजाने में हमारे भविष्य को भी प्रभावित करता है। गलत जीवनशैली और अपर्याप्त नींद के कारण हम गंभीर बीमारियों की ओर स्वयं ही अग्रसर हो रहे हैं। हाल ही में एक अध्ययन ने इस संबंध में चौंकाने वाली जानकारी सामने रखी है। आइए इसे विस्तार से जानें।
अपर्याप्त नींद के गंभीर परिणाम
अमेरिका की मेयो क्लिनिक द्वारा किए गए ताज़ा अध्ययन ने अपर्याप्त नींद के गंभीर परिणाम उजागर किए हैं। रात देर से सोना या दीर्घकालिक अनिद्रा (क्रॉनिक इंसोमनिया) केवल अगले दिन थकान का कारण नहीं बनती, बल्कि मस्तिष्क में बदलाव लाकर स्मृति ह्रास (डिमेंशिया) का जोखिम बढ़ाती है। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि नींद और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के बीच प्रत्यक्ष संबंध है।
अध्ययन के निष्कर्ष
मेयो क्लिनिक ने 50 वर्ष से अधिक आयु के 2750 व्यक्तियों का साढ़े तीन वर्षों तक अध्ययन किया। हर वर्ष उनकी स्मरणशक्ति की जाँच और मस्तिष्क के स्कैन किए गए। इसमें दो प्रमुख बातें सामने आईं: मस्तिष्क में जमा होने वाले अमायलॉइड प्लेक्स और व्हाइट मैटर हायपरइंटेन्सिटीज़ नामक सूक्ष्म क्षति। ये दोनों ही बातें अनिद्रा से पीड़ित व्यक्तियों में स्मृति ह्रास का जोखिम 40% तक बढ़ाती हैं।
मध्यम आयु में सतर्कता आवश्यक
अध्ययन में स्वयंसेवकों की औसत आयु 70 वर्ष थी, लेकिन अन्य शोधों के अनुसार, 50 के दशक में रोज़ाना छह घंटे से कम नींद लेने वालों में स्मृति ह्रास का खतरा स्पष्ट रूप से बढ़ जाता है। इसलिए मध्यम आयु में ही नींद, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और व्यायाम पर ध्यान देना आवश्यक है। अनिद्रा से प्रभावित व्यक्ति आयु से 4-5 वर्ष अधिक वृद्ध दिखाई देते हैं।
स्मरणशक्ति पर प्रभाव
अनिद्रा से ग्रसित व्यक्तियों की स्मरणशक्ति और सोचने की क्षमता सामान्य नींद लेने वालों की तुलना में तेज़ी से घटती है। अमायलॉइड प्लेक्स न्यूरॉन्स के कार्य को प्रभावित करते हैं, जबकि व्हाइट मैटर हानि मस्तिष्क में संदेश संचार को बाधित करती है। इन दोनों का संयुक्त प्रभाव स्मृति ह्रास के जोखिम को दोगुना कर देता है।
नींद और मस्तिष्क के स्वास्थ्य का संबंध
मध्यम आयु और उसके बाद पर्याप्त नींद लेना मस्तिष्क की कार्यक्षमता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अनिद्रा से रक्तचाप और रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ सकता है, जो मस्तिष्क के लिए हानिकारक है। स्मृति ह्रास से बचने के लिए मध्यम आयु में ही नींद की आदतें सुधारना और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना अनिवार्य है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. अपर्याप्त नींद से स्मृति ह्रास का खतरा कैसे बढ़ता है?
उत्तर: मेयो क्लिनिक के अध्ययन के अनुसार, दीर्घकालिक अनिद्रा (क्रॉनिक इंसोमनिया) मस्तिष्क में अमायलॉइड प्लेक्स और व्हाइट मैटर हायपरइंटेन्सिटीज़ जैसी सूक्ष्म क्षति करती है। इससे न्यूरॉन्स का कार्य प्रभावित होता है और मस्तिष्क में संदेश संचरण बाधित होता है, जिससे स्मृति ह्रास का खतरा 40% तक बढ़ जाता है। अपर्याप्त नींद लेने से स्मरणशक्ति और सोचने की क्षमता तेज़ी से घटती है।
2. किस आयु में नींद का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर: अध्ययन के अनुसार, 50 के दशक में रोज़ाना छह घंटे से कम नींद लेने वालों में स्मृति ह्रास का खतरा विशेष रूप से बढ़ जाता है। इसलिए मध्यम आयु में नींद की आदत सुधारना, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करना तथा नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। इससे मस्तिष्क का स्वास्थ्य बनाए रखा जा सकता है और स्मृति ह्रास का जोखिम कम किया जा सकता है।
3. नींद और मस्तिष्क स्वास्थ्य का संबंध क्या है?
उत्तर: नींद और मस्तिष्क की कार्यक्षमता सीधे जुड़ी हुई हैं। अनिद्रा से रक्तचाप और रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ सकता है, जो मस्तिष्क के लिए हानिकारक है। मध्यम आयु और उसके बाद पर्याप्त नींद लेने से मस्तिष्क की हानि को रोका जा सकता है। अध्ययन बताते हैं कि स्वस्थ नींद की आदतें स्मृति ह्रास के जोखिम को कम करने में मदद करती हैं।