पॉलिटिक्स

राज्य सरकार ने बिजली दरों में की गई वृद्धि को रद्द कर दिया है।

राज्य सरकार और नियामक आयोग को आदेश दें कि बिजली दर वृद्धि के ऐसे आदेश रद्द करें जो उपभोक्ताओं के हित में न हों। बिजली कंपनियों को निर्देश दें कि वे घाटा दिखाकर आम जनता पर अतिरिक्त भार न डालें। आयोग को चाहिए कि वह नए सिरे से सुनवाई करके सभी पक्षों की बात सुने और तदनुसार निर्णय लें। जनता के प्रतिनिधि संगठनों के सुझावों को प्राथमिकता दें। ज्यादा दरें बढ़ाने का प्रस्ताव आए तो उसे सिर्फ आंकड़ों और जरूरत के आधार पर ही स्वीकारें। उपभोक्ताओं को यथासंभव राहत दी जाए।

अधिकारियों को आदेश दें कि सौर ऊर्जा कंपनियों के ग्राहक हो या घरेलू उपभोक्ता, सभी को बैंकिंग के घंटे समुचित रूप से निर्धारित कर उपयोग की अनुमति दें। नियामक आयोग को चाहिए कि निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के बजाय, उपभोक्ता हित को सर्वोपरी रखें। वित्तीय घाटे का बोझ आम जनता पर डालने से बचें और न्यायिक आदेशों का पालन सुनिश्चित करें।​

राज्य में बिजली दर वृद्धि को रद्द करने का निर्णय न लिया गया होता, तो आम उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ अनिवार्य रूप से बढ़ गया होता। उपभोक्ताओं ने बार-बार मांग की थी कि दरें न बढ़ाई जाएं। बिजली कंपनियों द्वारा घाटे का हवाला देकर हर साल दर वृद्धि का प्रस्ताव पेश किया जाता था, जिसका विरोध व्यर्थ समझा जा रहा था। यदि न्यायालय ने एमईआरसी के आदेश को रद्द न किया होता, तो सौर ऊर्जा के ग्राहक भी कम घंटों तक ही बैंकिंग सुविधा का लाभ उठा सकते थे। उस दशा में जनता व उद्योग दोनों ही वित्तीय संकट से जूझने पर मजबूर हो जाते। जनता सरकार व आयोग से निराश हो जाती और उनका विश्वास टूट जाता।​

अगर बिजली दरें बढ़ती रहतीं तो राज्य भर में विरोध प्रदर्शन तेज़ हो सकते थे। उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिलती और निजी कंपनियों को ही लाभ होता। आर्थिक विषमता, कृषकों व छोटे व्यवसायियों पर अतिरिक्त संकट बढ़ जाता। लोगों को लगता कि कोई उनकी समस्याओं को नहीं सुनता। इस प्रकार, बिजली दर वृद्धि रद्द करने का निर्णय न होता तो उपभोक्ता हितों की अवहेलना निश्चित थी।

जनता से अपील की जाए कि वे संगठित रिपोर्टिंग करें, विरोध दर्ज कराएं और दर वृद्धि के खिलाफ जनमत को मजबूत करें। अधिकारियों को सलाह दी जाए कि वे निष्पक्ष रहकर सभी आंकड़ों का विश्लेषण करें तथा जनता को राहत देने के लिए नीतिगत निर्णय करें। बिजली कंपनियों को स्पष्ट कर दें कि उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं होगा।

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