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मोदी सरकार ने ग्रामीण गरीबों के रोजगार के कानूनी अधिकार को छीना : एआईपीएफ

नाम बदलने के नाम पर मनरेगा खत्म करने का आरोप, नई योजना से बढ़ेगा पलायन

सब तक एक्सप्रेस।

लखनऊ। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (एआईपीएफ) ने मोदी सरकार द्वारा मनरेगा के स्थान पर प्रस्तावित “विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025” को ग्रामीण गरीबों और मजदूरों के रोजगार के कानूनी अधिकार पर सीधा हमला बताया है। संगठन ने आरोप लगाया है कि सरकार नाम बदलने के बहाने मनरेगा को खत्म करने का प्रयास कर रही है।

एआईपीएफ द्वारा जारी बयान में कहा गया कि देशभर से यह मांग उठ रही थी कि मनरेगा के तहत पूरे वर्ष काम की गारंटी दी जाए, मजदूरी दर बाजार के अनुरूप बढ़ाई जाए और योजना के बजट में इजाफा किया जाए। लेकिन इन मांगों को पूरा करने के बजाय भाजपा सरकार ने मनरेगा को कमजोर करने और अंततः समाप्त करने की दिशा में कदम उठाया है।

संगठन ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी संविधान की दुहाई देकर संविधान में निहित जनपक्षधर प्रावधानों और उनसे जुड़े कानूनों को खत्म करने की नीति पर काम कर रही है। मनरेगा जैसी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को समाप्त करना इसी तानाशाही प्रवृत्ति का परिणाम है।

एआईपीएफ की राष्ट्रीय कार्य समिति ने चेतावनी दी कि मनरेगा की जगह लाई जा रही नई योजना से गांवों में पलायन और बेरोजगारी और अधिक बढ़ेगी, जिससे ग्रामीण गरीबों की क्रयशक्ति कमजोर होगी और आजीविका का संकट गहराएगा। इसका असर देश में पहले से जारी आर्थिक मंदी को और बढ़ाने वाला होगा।

बयान में कहा गया कि मनरेगा के तहत सभी ग्रामीण गरीबों को जॉब कार्ड दिया जाता था और सरकार की यह कानूनी जिम्मेदारी थी कि काम मांगने के 14 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाए। काम न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता और मजदूरी में देरी होने पर ब्याज सहित भुगतान का प्रावधान था, लेकिन नई योजना में ये सभी प्रावधान समाप्त कर दिए गए हैं।

एआईपीएफ ने यह भी आरोप लगाया कि मनरेगा में जहां केंद्र सरकार 90 प्रतिशत और राज्य सरकार 10 प्रतिशत व्यय वहन करती थी, वहीं नई योजना में 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य के हिस्से की बात कही गई है, जो पहले से आर्थिक संकट झेल रहे राज्यों के लिए संभव नहीं होगा।

संगठन ने कहा कि नई योजना के तहत मनरेगा में वर्ष के 60 दिन कृषि कार्य देने के प्रावधान पर भी रोक लगाई जा रही है, जबकि कृषि के मशीनीकरण के कारण पहले ही खेत मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है और उन्हें पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

एआईपीएफ ने यह भी कहा कि मनरेगा में जॉब कार्ड, मस्टर रोल, सोशल ऑडिट जैसी व्यवस्थाएं पूरी तरह लिखित और सार्वजनिक थीं, जबकि नई योजना में पारदर्शिता से जुड़े ये प्रावधान नदारद हैं।

राष्ट्रीय कार्य समिति ने आरोप लगाया कि बड़े पूंजी घराने शुरू से ही मनरेगा के विरोधी रहे हैं और सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार इस योजना के प्रति कभी गंभीर नहीं रही। कोविड काल को छोड़ दिया जाए तो सरकार लगातार मनरेगा के बजट में कटौती करती रही है और अब इसे पूरी तरह समाप्त करने की तैयारी की जा रही है।

एआईपीएफ ने सरकार से मांग की है कि वह इस जनविरोधी रोजगार योजना को तत्काल वापस ले और मनरेगा को मजबूत कर ग्रामीण गरीबों के रोजगार के कानूनी अधिकार की रक्षा करे। साथ ही संगठन ने देशभर के सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों से इस फैसले के खिलाफ संयुक्त विरोध का आह्वान किया है।

सब तक एक्सप्रेस

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