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एक जनपद एक उत्पाद के तहत दरी उद्योग को मिलेगा नया विस्तार

बुनकरों को विज्ञापन, मार्केटिंग, प्रशिक्षण और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करा रही जिला प्रशासन

सब तक एक्सप्रेस, विशेष संवाददाता शैलेन्द्र यादव

सीतापुर। जनपद सीतापुर के परंपरागत दरी उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए जिलाधिकारी डाॅ. राजागणपति आर. ने विशेष पहल शुरू की है। मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी एक जनपद एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के अंतर्गत दरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बुनकरों को वित्त पोषण, प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण, डिजाइनिंग, विज्ञापन एवं मार्केटिंग की सुविधाएं जनपद स्तर पर उपलब्ध कराई जा रही हैं।

जिलाधिकारी ने बताया कि ओडीओपी वित्त पोषण योजना, एमडीए योजना, टूलकिट एवं प्रशिक्षण योजना, सीएफसी (कॉमन फैसिलिटी सेंटर), डिजाइनिंग सेंटर तथा मार्केटिंग सपोर्ट के माध्यम से दरी उद्योग से जुड़े कारीगरों को सशक्त किया जा रहा है, जिससे वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना सकें।

दरी उद्योग सीतापुर जनपद का एक प्रमुख पारंपरिक उद्योग है, जिसमें अपार संभावनाएं निहित हैं। यह उद्योग पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित कौशल पर आधारित है और बिना औपचारिक प्रशिक्षण के भी कारीगर बचपन से ही इस कार्य में दक्ष होते रहे हैं। यह उद्योग महिला सशक्तिकरण में भी अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि दरी बुनाई का कार्य घरों में ही किया जाता है, जिससे महिलाएं पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ रोजगार से भी जुड़ी रहती हैं।

इतिहास में भी सीतापुर जनपद का वस्त्र निर्माण में विशेष स्थान रहा है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खैराबाद और दरियाबाद से हथकरघा वस्त्रों का विदेशों में निर्यात किया जाता था। आज भी जनपद सूती और ऊनी दरियों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है।
लहरपुर, हरगांव, बिसवां और खैराबाद दरी निर्माण के प्रमुख केंद्र हैं, जबकि पैतेपुर, इमलिया सुल्तानपुर और अटरिया में भी बड़ी संख्या में बुनकर कार्यरत हैं।

जनपद में सूती दरी के साथ-साथ पीवीसी, जूट और चिन्दी दरी (पुराने कपड़ों से निर्मित) का भी निर्माण किया जाता है। वर्तमान में यहां निर्मित दरियों का निर्यात जापान, फ्रांस, इटली, डेनमार्क, ब्राजील, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, कनाडा, अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में किया जा रहा है।

आंकड़ों के अनुसार, जनपद में लगभग 150 दरी निर्माण इकाइयां, 45 हजार हथकरघे तथा 30 से 35 दरी निर्माण समितियां सक्रिय हैं। दरी उद्योग के माध्यम से प्रतिवर्ष करीब 311 करोड़ रुपये का निर्यात किया जा रहा है।

जिलाधिकारी की इस पहल से दरी उद्योग को नई पहचान मिलने के साथ-साथ बुनकरों की आय में वृद्धि और स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

सब तक एक्सप्रेस

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