चार दशक बाद गोगुड़ा पहाड़ी से माओवादियों का प्रभाव खत्म, सुरक्षा बलों ने नियंत्रण स्थापित किया।

गोगुड़ा पहाड़ी—चार दशक बाद आज़ादी की सांस
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में स्थित गोगुड़ा पहाड़ी वर्षों से माओवादी गतिविधियों का प्रमुख गढ़ मानी जाती थी। 675 मीटर ऊँची यह पहाड़ी घने जंगलों, खड़ी चढ़ाई और खाईयों से घिरी होने के कारण सुरक्षा बलों के लिए हमेशा एक चुनौती रही। लेकिन आखिरकार चार दशक की इस चुनौती को जवानों के अदम्य साहस ने पराजित कर दिया।
सिर्फ एक पगडंडी, और उसी पर निर्भर पूरी रणनीति
इस पहाड़ी तक पहुँचने का मात्र एक ही मार्ग था—एक संकरी पगडंडी। माओवादी इसी कठिन भूगोल को अपनी सुरक्षा ढाल के रूप में इस्तेमाल करते थे। प्रशासन के लिए गोगुड़ा क्षेत्र वर्षों तक “नो-गो” ज़ोन जैसा रहा। लेकिन जवानों ने असंभव प्रतीत होने वाले काम को संभव किया।
18 दिन की कठिन चढ़ाई और रास्ते का निर्माण
सुरक्षा बलों की टीम ने 18 दिनों तक लगातार चढ़ाई कर पहाड़ी पर पहुँचने का मार्ग तैयार किया।
कच्चे, टेढ़े-मेढ़े रास्तों को मजबूती दी गई, अवरोध हटाए गए और धीरे-धीरे एक ऐसा रास्ता बना जो कैंप तक सामान, हथियार और जरूरी संसाधन पहुँचाने में सक्षम हो सके।
पहली बार गोगुड़ा की चोटी पर तिरंगा और कैंप
इतिहास में पहली बार सुरक्षा बलों ने गोगुड़ा की चोटी पर नया कैंप स्थापित कर दिया।
इससे न केवल सेना की मौजूदगी सुदृढ़ हुई बल्कि माओवादी गतिविधियों पर सीधा नियंत्रण भी स्थापित हुआ।
गोगुड़ा गांव—डर से उम्मीद तक की यात्रा
गोगुड़ा गांव में करीब 250 से अधिक परिवार बसे हैं। वर्षों से उन्हें माओवादियों के दबाव, धमकी और भय के माहौल में रहना पड़ता था।
कैंप खुलते ही गांव में सुरक्षा और विश्वास का नया अध्याय शुरू हो गया है।
एसपी किरण चव्हाण की चुनौतीपूर्ण टीम
सुकमा के एसपी किरण चव्हाण ने बताया कि जवानों ने रास्ते में एंबुश, आइईडी और घातक हमलों की आशंकाओं के बीच ऑपरेशन को अंजाम दिया।
उनके अनुसार, यह सिर्फ ऑपरेशन नहीं, बल्कि “जनजीवन को सुरक्षित करने का मिशन” था।
माओवादियों का गढ़ अब विकास की ओर
कैंप स्थापित होने के बाद अब सड़क निर्माण तेज हो चुका है और प्रशासन विकास कार्यों को वहाँ तक ले जाने की तैयारी कर रहा है। दशकों पुराने अंधेरे को पीछे छोड़कर यह क्षेत्र अब नई रोशनी की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है।



